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Dharmkshetra | धर्मक्षेत्र

बृहदारण्यकोपनिषद

बृहदारण्यकोपनिषद

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पुस्तक रूप में बृहदारण्यक उपनिषद - यह उपनिषद यजुर्वेद की कांवि शाखा में वाजसनेय ब्राह्मण के अंतर्गत है। सृजनात्मकता की दृष्टि से यह समस्त उपनिषदों से बड़ा है तथा वन में अध्ययन किये जाने के कारण इसे आरण्यक भी कहते हैं। वास्तुशास्त्री सुरेश्वराचार्य ने इस वास्तविकता को स्वीकार किया है। विभिन्न संदर्भों में वर्णित दार्शनिक ज्ञान के इस अमूल्य ग्रंथ पर भगवान शंकराचार्य की सबसे विशद टीका रत्न है।

  • बृहदारण्यक उपनिषद पुस्तक रूप में प्रस्तुत है।
  • यह यजुर्वेद की कण्व शाखा में वाजसनेय ब्राह्मण से संबंधित है।
  • रचनात्मकता की दृष्टि से इसे अन्य सभी उपनिषदों की तुलना में बड़ा माना जाता है।
  • इसे आरण्यक के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि पारंपरिक रूप से इसका अध्ययन जंगल में किया जाता है।
  • वास्तुविद सुरेश्वराचार्य ने इस पहलू को स्वीकार किया है।
  • इस उपनिषद पर भगवान शंकराचार्य की टिप्पणी अत्यधिक मान्य है और इसे दार्शनिक ज्ञान का एक बहुमूल्य ग्रंथ माना जाता है।
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