गणेश चतुर्थी
गणेश चतुर्थी भगवान श्रीगणेश के जन्म का एक हिंदू त्योहार है, जो हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार समृद्धि और बुद्धि के देवता गणेश के लिए समर्पित है और दस दिनों तक चलता है, जिसका समापन अनंत चतुर्दशी पर होता है। इस दौरान, भक्त मिट्टी की गणेश प्रतिमाएं स्थापित करते हैं, उनकी पूजा करते हैं और अंत में उन्हें जल में विसर्जित करते हैं। यह त्योहार भारत के महाराष्ट्र में विशेष उत्साह से मनाया जाता है।
कब और कैसे मनाया जाता है?
तिथि: यह त्योहार हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को आता है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर की शुरुआत में होता है।
उत्सव: गणेश चतुर्थी पर घरों और सार्वजनिक पंडालों में भगवान गणेश की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं।
अवधि: यह त्योहार 10 दिनों तक चलता है।
विसर्जन: दसवें दिन, यानी अनंत चतुर्दशी को, गणेश प्रतिमाओं को तालाबों, नदियों या सागर में विसर्जित किया जाता है।
भगवान गणेश का महत्व
गणेश जी को विघ्नहर्ता (बाधाओं को दूर करने वाले) और सिद्धिविनायक (सफलता देने वाले) कहा जाता है।
किसी भी शुभ कार्य या पूजन की शुरुआत “गणेश वंदना” से होती है।
गणेश जी बुद्धि, विवेक, धन, और सुख-समृद्धि के देवता माने जाते हैं।
गणेश चतुर्थी की कथा (कहानी)
गणेश जी का जन्म कैसे हुआ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती जी ने स्नान करते समय अपने शरीर के उबटन से एक बालक की प्रतिमा बनाई और उसमें प्राण प्रतिष्ठा करके उसे अपना पुत्र बना लिया। उन्होंने उसे द्वार पर पहरा देने को कहा।
इसी दौरान भगवान शिव वहाँ आए और अंदर प्रवेश करना चाहा, परंतु गणेश जी ने माता की आज्ञा अनुसार उन्हें रोक दिया। इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने गणेश जी का मस्तक काट दिया।
माता पार्वती अत्यंत शोकाकुल हो गईं और उन्होंने समस्त सृष्टि का विनाश करने की ठान ली। तब देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से माता पार्वती को शांत करने का उपाय करने का अनुरोध किया।
शिवजी ने गणेश जी के धड़ पर हाथी का सिर लगाकर उन्हें पुनर्जीवित किया और उन्हें देवताओं में अग्रस्थान प्रदान किया।
गणेश चतुर्थी मनाने की परंपरा
लोग मिट्टी की गणेश प्रतिमा घर या पंडाल में स्थापित करते हैं।
पूजा में दुर्वा घास, मोदक, लड्डू, लाल फूल, नारियल और तुलसी पत्र का विशेष महत्व है।
गणेश जी को 10 दिनों तक भक्तिपूर्वक पूजन कर, अंतिम दिन अनंत चतुर्दशी को प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है।
विसर्जन के समय “गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ” के जयकारे लगाए जाते हैं।
गणेश चतुर्थी का आध्यात्मिक महत्व
यह पर्व हमें सिखाता है कि आत्मविश्वास और विवेक से जीवन की हर बाधा दूर की जा सकती है।
गणेश चतुर्थी लोगों को भक्ति, एकता और सद्भाव का संदेश देती है।
गणेश चतुर्थी की विशेषताएँ
सार्वजनिक उत्सव: लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता संग्राम के समय गणेश चतुर्थी को सार्वजनिक उत्सव बनाने की परंपरा शुरू की, ताकि लोग एकजुट होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ खड़े हो सकें।
सांस्कृतिक कार्यक्रम: पंडालों में पूजा के साथ-साथ सांस्कृतिक, सामाजिक और शैक्षणिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
गणेश चतुर्थी पर व्रत और पूजा विधि
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
गणेश जी की प्रतिमा को चौकी पर लाल कपड़े पर स्थापित करें।
गणेश जी को सिंदूर, दूर्वा घास, मोदक और फल अर्पित करें।
गणेश अथर्वशीर्ष, गणपति स्तोत्र और मंत्रों का जाप करें।
दिनभर व्रत रखा जाता है और शाम को आरती की जाती है।
गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक सम्पूर्ण विवरण
1. गणेश चतुर्थी का दिन (भगवान गणेश का आगमन)
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है।
इस दिन प्रातः स्नान करके भक्त घर या पंडाल में मिट्टी की गणेश प्रतिमा का स्वागत करते हैं।
भगवान का आगमन धूमधाम से होता है, ढोल-नगाड़ों और “गणपति बप्पा मोरया” के जयकारों के साथ।
प्रतिमा को लाल या पीले कपड़े से सजे पवित्र स्थान पर स्थापित किया जाता है।
फिर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है, जिसमें मंत्रोच्चारण से गणेश जी को विधिवत आमंत्रित किया जाता है।
भगवान को मोदक, लड्डू, नारियल, फूल, और दूर्वा अर्पित किए जाते हैं।
इस दिन से भगवान को घर का सदस्य और अतिथि माना जाता है।
2. गणेश चतुर्थी से लेकर प्रतिदिन की पूजा
हर सुबह और शाम गणेश जी की आरती, भजन, शंख-घंटी और मंत्रोच्चार से पूजा होती है।
भक्तजन गणेश अथर्वशीर्ष, गणपति स्तोत्र और गणेश चालीसा का पाठ करते हैं।
मोदक, लड्डू और अन्य प्रसाद रोज़ चढ़ाया जाता है।
घर या पंडाल में पूजा के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम, कीर्तन, भजन, नृत्य और सामाजिक आयोजन भी किए जाते हैं।
3. गणेशोत्सव के 10 दिन (भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक)
दिन 1 (गणेश चतुर्थी): भगवान का आगमन और स्थापना।
दिन 2–9: प्रतिदिन सुबह-शाम पूजा, आरती, भजन, प्रसाद और दर्शन। भक्तजन व्रत रखते हैं और भगवान से आशीर्वाद मांगते हैं।
दिन 10 (अनंत चतुर्दशी): इस दिन गणेश जी को विदाई दी जाती है। इसे विसर्जन का दिन कहा जाता है।
4. अनंत चतुर्दशी (विसर्जन का दिन)
10वें दिन भगवान गणेश को बड़े धूमधाम और भावनाओं के साथ विदाई दी जाती है।
भक्त “गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ” के नारों के साथ विसर्जन यात्रा निकालते हैं।
ढोल-ताशों, नृत्य और उत्साह से भरी शोभायात्रा में गणेश प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है।
विसर्जन का अर्थ है - भगवान गणेश की मूर्ति को पंचतत्व में विलीन कर देना, ताकि अगले वर्ष पुनः उनका आगमन हो सके।
यह हमें यह भी सिखाता है कि जीवन अस्थायी है और अंततः सबको ईश्वर में लीन होना है।
5. विसर्जन का आध्यात्मिक संदेश
भगवान गणेश का आगमन - नई शुरुआत, शुभता और समृद्धि का प्रतीक।
10 दिन तक पूजा - भक्ति, अनुशासन और सामूहिक एकता का प्रतीक।
विसर्जन - त्याग और अनित्य (सब नश्वर है) का संदेश।
महत्व और उद्देश्य
बुद्धि और समृद्धि के देवता: भगवान गणेश को बुद्धि, स्थिरता और समृद्धि का देवता माना जाता है।
विघ्नहर्ता: उन्हें नई शुरुआत के देवता और सभी बाधाओं को दूर करने वाला भी कहा जाता है।
आस्था: ऐसी मान्यता है कि इन दस दिनों के दौरान भगवान गणेश पृथ्वी पर भक्तों को आशीर्वाद देने आते हैं।
गणेश चतुर्थी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है बल्कि यह उत्सव भारतीय संस्कृति, भक्ति, कला, समाज और पर्यावरण संरक्षण का अद्भुत संगम है।
लोकमान्य तिलक का योगदान: 1893 में लोकमान्य तिलक ने गणेश उत्सव को एक निजी पारिवारिक उत्सव से सार्वजनिक कार्यक्रम में बदला था, ताकि लोगों में एकता लाई जा सके।