दीपावली
प्रकाश का पर्व दीपावली भारतीय संस्कृति की कालातीत निरंतरता का प्रतीक है। पांच दिनों तक चलने वाला यह पर्व सतयुग, त्रेता और द्वापर युग की घटनाओं से प्रेरित है।
धनतेरस - शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम् के माहात्म्य को चरितार्थ करते हुए दीपावली महोत्सव का आरम्भ आयुर्वेद के प्रवर्तक, आदि चिकित्सक भगवान धन्वंतरि के प्रादुर्भाव दिवस से होता है। मान्यता है कि सतयुग में समुद्र मंथन के फलस्वरूप भगवान धन्वंतरि चिकित्सा शास्त्र और अमृत कलश के साथ इसी दिन अवतरित हुए थे।
नरकचतुर्दशी/छोटी दीपावली - द्वापर युग में, भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से असुर राज नरकासुर का वध करके पृथ्वी को अत्याचार से मुक्त किया था।
दीपावली - सतयुग में माता लक्ष्मी का अवतरण समुद्र मंथन के फलस्वरूप हुआ था। मान्यता है कि माता लक्ष्मी इस दिन अपने मानस पुत्र श्री गणेश के साथ पृथ्वी भ्रमण करती हैं। त्रेता युग में रावण वध के पश्चात प्रभु श्रीराम का अयोध्या आगमन इसी दिन, कार्तिक अमावस्या को हुआ था। उनके आगमन की प्रसन्नता को अयोध्या वासियों की भांति आज भी लोग दीपमाला करके अभिव्यक्त करते हैं।
गोवर्धन पूजा - द्वापर युग में इंद्र के अभिमान को चूर करने एवं गोकुल वासियों की वर्षा से रक्षा हेतु भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा पर उठा लिया था। भगवान की भक्त वत्सलता को स्मरण करते हुए स्वयं को प्रभु को समर्पित करने की प्रेरणा दिवस के रुप में इस दिन को मनाते हैं।
भाई दूज - कहा जाता है कि, मृत्यु के देवता, यम की बहन यमी चाहती थीं कि उनके भाई उनके घर आएं, परन्तु व्यस्तता के कारण यम उनसे मिलने नहीं जा पाते थे। जब यमराज आखिरकार उनसे मिलने गए, तो यमी ने उनका बड़ा स्वागत सत्कार किया। उन्होंने भाई के आने की खुशी में मिठाई बांटी और भाई का टीका किया। इन पर यम ने प्रसन्न होकर यमी से वरदान मांगने को कहा। यमी ने बहनों के लिए एक दिन मांगा, जिस दिन भाई हर वर्ष बहनों के घर आया करेंगे।
इसी दिन, भगवान श्रीकृष्ण नरकासुर वध करके अपनी बहन सुभद्रा के पास गए थे। सुभद्रा ने उनके माथे पर तिलक लगाया और आरती की।
इन कारणों से भाई-बहन के निश्छल प्रेम का पर्व भाई दूज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है।
आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!
भारत की चेतना उसकी संस्कृति है। अभय होकर इस संस्कृति का प्रचार करो।
स्वामी विवेकानन्द"