एकादशी

एकादशी = एक (1) + दशी (10) = 11

एकादशी’ संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है – "ग्यारहवाँ"। यह हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को आती है, अर्थात् एक महीने में कुल दो एकादशियाँ होती हैं:

  • शुक्ल पक्ष एकादशी (चंद्रमा के बढ़ने के समय / अमावस्या के बाद 11वाँ दिन)
  • कृष्ण पक्ष एकादशी (चंद्रमा के घटने के समय / पूर्णिमा के बाद 11वाँ दिन)

वर्ष भर में कुल 24 से 26 एकादशियाँ (अधिक मास के साथ) होती हैं।

 

एकादशी का महत्त्व

आध्यात्मिक लाभ

  • एकादशी व्रत रखने से मन शुद्ध होता है, विकार दूर होते हैं और आत्मा को शांति मिलती है।

भगवान विष्णु की कृपा

  • जो भक्त श्रद्धा से व्रत रखते हैं, उन्हें भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पापों का नाश

  • शास्त्रों के अनुसार, एकादशी व्रत से पूर्व जन्मों के पाप भी मिट जाते हैं।

मोक्ष की प्राप्ति

  • विशेष रूप से निर्जला एकादशी और वैष्णव एकादशी का व्रत करने से मोक्ष (मुक्ति) का मार्ग प्रशस्त होता है।

शरीर को लाभ

  • उपवास करने से पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है और शरीर विषरहित बनता है।

 

व्रत विधि (सामान्य रूप से)

  1. व्रत से एक दिन पहले सात्विक भोजन लें।
  2. एकादशी के दिन प्रातः स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें।
  3. पूरे दिन फलाहार करें और अन्न व अनाज से परहेज़ करें।
  4. रात में जागरण करें और भगवान विष्णु का नाम स्मरण करें।
  5. द्वादशी (अगले दिन) को व्रत का पारण करें, ब्राह्मणों को भोजन कराएँ और दान दें।

 

एकादशी व्रत करने का लाभ

  • मन और शरीर शुद्ध होते हैं
  • आत्मा को शांति मिलती है
  • सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है
  • पुण्य फल की प्राप्ति होती है
  • और अंततः मोक्ष (ईश्वर से मिलन) संभव होता है

 

एकादशी का धार्मिक पक्ष

एकादशी का धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा और पवित्र माना गया है। यह तिथि विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित होती है।

  1. भगवान विष्णु की प्रिय तिथि
  • शास्त्रों के अनुसार, एकादशी तिथि स्वयं भगवान विष्णु की तिथि मानी जाती है।
  • इस दिन व्रत, उपवास और भक्ति करने से भगवान विष्णु विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं।

    2. पापों से मुक्ति

  • एकादशी व्रत से पूर्व जन्म और वर्तमान जीवन के पापों का क्षय होता है।
  • इसे पापनाशिनी तिथि भी कहा गया है।

    3. व्रत और साधना का दिन

  • इस दिन व्यक्ति को सत्य, ब्रह्मचर्य, अहिंसा, और संयम का पालन करना चाहिए।
  • व्रत, उपवास, भगवान का स्मरण और भजन-कीर्तन करना अत्यंत शुभ माना गया है।

    4. मोक्ष की प्राप्ति

  • पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है कि जो व्यक्ति श्रद्धा से एकादशी व्रत करता है, वह मोक्ष (मुक्ति) को प्राप्त करता है।

    5. पौराणिक कथाएँ

  • पद्म पुराण, स्कंद पुराण आदि ग्रंथों में एकादशी की महिमा वर्णित है।
  • एक कथा के अनुसार, जब पापों का अतिरेक हो गया, तब भगवान विष्णु के शरीर से 'एकादशी देवी' प्रकट हुईं, जिन्होंने पाप रूपी असुर 'मुर' का संहार किया।

 

एकादशी व्रत का वैज्ञानिक पक्ष

  1. मानसिक और शारीरिक शुद्धि
  • चंद्रमा की शक्ति मानसिक स्थिति पर असर डालती है।
  • इस दिन व्यक्ति की बुद्धि और भावनाएँ अधिक संवेदनशील होती हैं।

    2. पाचन तंत्र को आराम

  • उपवास से पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है।
  • अनाज (विशेषकर चावल) से परहेज़ किया जाता है क्योंकि उस दिन यह गैस और आलस्य बढ़ा सकता है।

    3. शरीर का डिटॉक्स

  • उपवास से शरीर में जमा हुए विषैले पदार्थ बाहर निकलते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली मज़बूत होती है।

    4. जैविक चक्र के अनुसार दिन

  • एकादशी चंद्र चक्र के उस बिंदु पर आती है जहाँ ऊर्जा का संतुलन साधना और उपवास से सुधर सकता है।

    5. बौद्धिक विकास और एकाग्रता

  • उपवास और ध्यान से व्यक्ति की एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है।

    6. अनाज न खाने के पीछे का वैज्ञानिक कारण

  • एकादशी के दिन अतिसूक्ष्म जीवाणु वातावरण में सक्रिय होते हैं, और अनाज उन्हें आकर्षित करता है।

 

निष्कर्ष

एकादशी व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह एक आयुर्वेदिक, मानसिक, और जैविक संतुलन का दिन भी है।
यह शरीर, मन, आत्मा — तीनों के संतुलन और शुद्धि के लिए अत्यंत उपयुक्त समय है।

  • वर्ष 2016 में नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. योशिनरी ओसिमी ने सिद्ध किया कि उपवास से कैंसर कोशिकाएँ कमजोर हो जाती हैं।
  • वर्ष 2019 में जापानी वैज्ञानिक डॉ. एलिसन और डॉ. होन्जो ने यह साबित किया कि 15 दिन में एक बार निर्जल उपवास करने से कोशिकाएं कैंसरमुक्त हो सकती हैं।
  • प्राचीन भारतीय विद्वानों ने कालगणना के आधार पर 15 दिन में एक एकादशी उपवास की परंपरा बनाई थी।

 

विक्रम संवत 2082 (मार्च 30, 2025 से मार्च 19, 2026 तक) की सभी एकादशियाँ

क्र.सं. एकादशी का नाम पक्ष हिन्दू माह तिथि / दिन / तारीख प्रमुख महत्त्व / फल
1 कामदा एकादशी शुक्ल चैत्र 8 अप्रैल 2025 (मंगलवार) कामना पूर्ति, विघ्न निवारण
2 वरुथिनी एकादशी कृष्ण वैशाख 24 अप्रैल 2025 (गुरुवार) संकट निवारण, परिवार कल्याण
3 मोहिनी एकादशी शुक्ल वैशाख 8 मई 2025 (गुरुवार) मोह नाश, मोहिनी अवतार की कथा
4 अपरा एकादशी कृष्ण ज्येष्ठ 23 मई 2025 (शुक्रवार) मातृ-वंदना, पिता का पूजन
5 निर्जला एकादशी शुक्ल ज्येष्ठ 6 जून 2025 (शुक्रवार) सर्वपाप नाश, कठोर व्रत
6 योगिनी एकादशी कृष्ण आषाढ़ 21 जून 2025 (शनिवार) धन-समृद्धि, सुख-शांति
7 देवशयनी एकादशी शुक्ल आषाढ़ 6 जुलाई 2025 (रविवार) विष्णु भगवान विश्राम
8 कामिका एकादशी कृष्ण श्रावण 21 जुलाई 2025 (सोमवार) साधना, तप के लिए श्रेष्ठ
9 श्रावण पुत्रदा एकादशी शुक्ल श्रावण 5 अगस्त 2025 (मंगलवार) पुत्र-प्राप्ति हेतु विशेष
10 जया एकादशी कृष्ण भाद्रपद 19 अगस्त 2025 (मंगलवार) विपत्ति से रक्षा
11 पद्मा एकादशी शुक्ल भाद्रपद 3 सितंबर 2025 (बुधवार) घर व परिवार की रक्षा
12 इंदिरा एकादशी कृष्ण आश्विन 17 सितंबर 2025 (बुधवार) वर्षा हेतु इंद्र पूजन
13 पापांकुशा एकादशी शुक्ल आश्विन 3 अक्टूबर 2025 (शुक्रवार) पापों का नाश
14 रमा एकादशी कृष्ण कार्तिक 17 अक्टूबर 2025 (शुक्रवार) श्री राम भक्तों हेतु विशेष
15 देवउठनी एकादशी शुक्ल कार्तिक 1 नवंबर 2025 (शनिवार) विष्णु जागरण, चातुर्मास समापन
16 उत्पन्ना एकादशी कृष्ण मार्गशीर्ष 15 नवंबर 2025 (शनिवार) ज्ञान-वृद्धि, वैश्विक कल्याण
17 मोक्षदा एकादशी शुक्ल मार्गशीर्ष 1 दिसंबर 2025 (सोमवार) मोक्ष प्राप्ति हेतु श्रेष्ठ
18 सफला एकादशी कृष्ण पौष 15 दिसंबर 2025 (सोमवार) सफल जीवन, समृद्धि
19 पौष पुत्रदा एकादशी शुक्ल पौष 30 दिसंबर 2025 (मंगलवार) पुत्र लाभ, समृद्धि
20 षटतिला एकादशी कृष्ण माघ 14 जनवरी 2026 (बुधवार) पापों का नाश, मन की शांति
21 जया एकादशी शुक्ल माघ 29 जनवरी 2026 (गुरुवार) विजय, सफलता की प्राप्ति
22 विजया एकादशी कृष्ण फाल्गुन 13 फरवरी 2026 (शुक्रवार) दुखों से मुक्ति
23 आमलकी एकादशी शुक्ल फाल्गुन 27 फरवरी 2026 (शुक्रवार) आमलकी पूजा, रोग निवारण
24 पापमोचिनी एकादशी कृष्ण चैत्र 15 मार्च 2026 (रविवार) आत्मशुद्धि, पापमोचन

 

 

कामदा एकादशी –

कामदा एकादशी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। यह वर्ष की पहली एकादशी मानी जाती है और इसे पापों का नाश करने वाली मानी जाती है। यह चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है, यानी मार्च-अप्रैल के बीच। 

पुराणों के अनुसार, यह एकादशी उस समय से प्रसिद्ध है जब एक गंधर्व ने इस व्रत को कर अपने स्त्री को पुनर्जीवित किया था। यह व्रत पापों से मुक्ति और मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है।

महत्त्व/फल:

  • इस एकादशी का व्रत करने से मन की सारी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
  • व्यक्ति को ब्रह्म हत्या जैसे महापापों से भी छुटकारा मिलता है।
  • इस व्रत से वैवाहिक जीवन में प्रेम बना रहता है और जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।
  • यह व्रत स्वर्ग प्राप्ति में भी सहायक है।

भक्त इस दिन उपवास करते हैं, भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, रात को जागरण करते हैं और द्वादशी को व्रत का पारण करते हैं।

 

वरूथिनी एकादशी – 

वरूथिनी एकादशी वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। "वरूथिनी" का अर्थ होता है "सुरक्षा देने वाली"। यह एकादशी मनुष्य को सभी प्रकार की नकारात्मकताओं और पापों से बचाने वाली मानी जाती है। यह वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आती है, यानी अप्रैल-मई के बीच। 

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार राजा मांधाता ने यह व्रत किया था और उन्हें बड़े दुखों से मुक्ति मिली। इसी प्रकार, एक अन्य कथा में राजा मंदाता ने यह व्रत करके मुक्ति प्राप्त की थी। यह व्रत रक्षा कवच की तरह कार्य करता है।

महत्त्व/फल:

  • वरूथिनी एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को समस्त पापों से छुटकारा मिलता है।
  • यह व्रत शारीरिक, मानसिक और आत्मिक बल प्रदान करता है।
  • जिन व्यक्तियों पर कोई संकट, शारीरिक रोग या बुरी दृष्टि हो, उनके लिए यह व्रत विशेष रूप से फलदायी होता है।
  • यह एकादशी दान-पुण्य के लिए भी अति शुभ मानी जाती है।

इस दिन भक्त उपवास करते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। रात्रि में जागरण और भजन-कीर्तन करते हैं। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण और ब्राह्मणों को दान देकर व्रत पूर्ण किया जाता है।


मोहिनी एकादशी –

मोहिनी एकादशी वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है। यह एकादशी भगवान विष्णु के मोहिनी रूप से जुड़ी है, जिसमें उन्होंने देवताओं की रक्षा के लिए अमृत वितरण किया था। यह व्रत मोह और भ्रम से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है। यह वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है, यानी अप्रैल-मई के महीने में।

स्कंद पुराण के अनुसार, श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इस व्रत की महिमा सुनाई थी। इस व्रत को करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त होता है। कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत दिलवाया और असुरों को पराजित किया। उसी रूप की स्मृति में यह एकादशी मनाई जाती है।

महत्त्व/फल:

  • इस व्रत से मोह, माया, भ्रम, लोभ आदि मानसिक दोषों से मुक्ति मिलती है।
  • सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग मिलता है।
  • यह एकादशी विशेष रूप से विवेक और आध्यात्मिक जागृति प्रदान करने वाली मानी जाती है।
  • जो श्रद्धा से इस व्रत को करता है, उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।

व्रती उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की विशेष पूजा करते हैं। रात्रि जागरण करते हैं और "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते हैं। द्वादशी को व्रत का पारण और गरीबों को दान देकर व्रत पूरा करते हैं।


अपरा एकादशी –

अपरा एकादशी ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इसका नाम “अपरा” इसलिए पड़ा क्योंकि यह व्रत अपार (अर्थात असीम) फल देने वाला है। यह एकादशी अज्ञान, पाप और दुखों को दूर करने वाली मानी जाती है। यह ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आती है, यानी मई-जून के महीने में।

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या, गोहत्या, भ्रूणहत्या, झूठ बोलना, परनिंदा जैसे पाप भी नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत उन लोगों के लिए विशेष फलदायक है जो जीवन में बहुत गलतियाँ कर चुके हों और पश्चाताप कर शुद्ध जीवन की ओर बढ़ना चाहते हों।

महत्त्व/फल:

  • यह व्रत समस्त पापों का नाश करता है और आत्मा को शुद्ध करता है।
  • इस व्रत से पूर्व जन्मों के पाप भी कटते हैं।
  • जो व्यक्ति व्यापार, नौकरी या परीक्षा में असफल हो रहा हो, उसके लिए यह व्रत सफलता दिलाने वाला होता है।
  • मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी यह एकादशी विशेष मानी गई है।

व्रती दिनभर उपवास रखता है और भगवान विष्णु की पूजा करता है। रात में जागरण और विष्णु सहस्त्रनाम, भगवद्गीता का पाठ किया जाता है। द्वादशी को ब्राह्मण भोजन और दान करके व्रत का पारण किया जाता है।


निर्जला एकादशी –

निर्जला एकादशी सबसे कठिन लेकिन सबसे फलदायी एकादशी मानी जाती है। "निर्जला" का अर्थ है "बिना जल के", यानी इस दिन व्रती जल तक ग्रहण नहीं करता। इसे भीम एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि पांडवों में से भीमसेन ने यह एकादशी की थी। यह ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है, जो आमतौर पर मई-जून के महीने में होती है। 

कथा के अनुसार, भीमसेन भोजन के बिना रह नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने सभी एकादशियों का फल एक साथ पाने के लिए महर्षि व्यास के कहने पर केवल निर्जला एकादशी का व्रत किया। यह व्रत सभी 24 एकादशियों के व्रत के बराबर फल देता है।

महत्त्व/फल:

  • इस व्रत से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • यह व्रत करने से 24 एकादशियों का पुण्य एक साथ प्राप्त होता है।
  • मृत्यु के बाद व्यक्ति को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है।
  • यह व्रत आत्मशुद्धि, संयम और त्याग का प्रतीक है।

इस दिन व्रती पूरा दिन बिना अन्न और जल के व्रत करता है। भगवान विष्णु की पूजा, भजन-कीर्तन और रात में जागरण किया जाता है। द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण फल और जल से किया जाता है। ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और जल से भरे घड़े का दान करना शुभ होता है।


योगिनी एकादशी – 

योगिनी एकादशी आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है। यह एकादशी पापों का नाश करके पुण्य देने वाली और रोगों से मुक्ति दिलाने वाली मानी जाती है। इसे विशेष रूप से स्वास्थ्य, पापमोचन और मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आती है, यानी जून-जुलाई के महीने में।

पौराणिक कथा के अनुसार, अलकापुरी के एक सेवक "हेममाली" को अपने कर्तव्यों से विमुख होकर पत्नी प्रेम में लीन रहने के कारण शाप मिला और वह कुष्ठ रोगी बन गया। बाद में उसने महर्षि मार्कण्डेय से योगिनी एकादशी व्रत की महिमा जानी और श्रद्धापूर्वक व्रत कर अपने पापों से मुक्त होकर स्वस्थ और सौभाग्यशाली जीवन प्राप्त किया।

महत्त्व/फल:

  • इस व्रत से सभी प्रकार के पाप नष्ट होते हैं।
  • शारीरिक रोगों, विशेषकर चर्म रोगों (कुष्ठ आदि) से मुक्ति मिलती है।
  • यह व्रत स्वर्ग प्राप्ति और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।
  • सभी प्रकार के मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
  • यह व्रत 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के पुण्य के बराबर माना गया है।

व्रती सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प करता है। भगवान विष्णु की विशेष पूजा, विष्णुसहस्त्रनाम पाठ और भजन करते हैं। दिन भर उपवास और रात्रि जागरण करते हैं। द्वादशी को व्रत का पारण करते हुए ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दी जाती है।


देवशयनी एकादशी – 

देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी, आषाढ़ी एकादशी या पद्मा एकादशी भी कहा जाता है। यह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है और इस दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा (शयन) में चले जाते हैं। यह एकादशी चातुर्मास की शुरुआत का प्रतीक होती है। यह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है, यानी जून-जुलाई के महीने में।

पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) को जागते हैं। इस दौरान सृष्टि का भार भगवान शिव और ब्रह्मा जी संभालते हैं।

महत्त्व/फल:

  • इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं।
  • भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  • यह व्रत वैवाहिक सुख, धार्मिक उन्नति, और भवसागर से मुक्ति दिलाता है।
  • इस दिन से शुभ कार्य (जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि) निषिद्ध हो जाते हैं और यह नियम प्रबोधिनी एकादशी तक चलता है।

व्रती प्रातःकाल स्नान करके व्रत का संकल्प करता है। भगवान विष्णु की पूजा, विशेषकर शंख, चक्र, गदा, पद्म के प्रतीकों से की जाती है। रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन करते हैं। अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मणों को दान करके व्रत का पारण किया जाता है। बहुत से भक्त इस दिन शयनोत्सव भी मनाते हैं जिसमें विष्णु जी के लिए शय्या सजाई जाती है।


कामिका एकादशी 

कामिका एकादशी श्रावण कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है। यह एकादशी विशेष रूप से मन की कामनाओं की पूर्ति और पितरों के उद्धार के लिए मानी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आती है, यानी जुलाई-अगस्त के महीने में।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को कामिका एकादशी की महिमा बताई थी। उन्होंने कहा कि यह व्रत इतना पुण्यकारी है कि गंगा स्नान, तीर्थ यात्रा, गौ दान और यज्ञ करने के बराबर फल देता है। इस व्रत से ब्रह्म हत्या जैसे क्रूर पाप भी मिट सकते हैं।

महत्त्व/फल:

  • इस व्रत से मन की सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं।
  • व्रत रखने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है।
  • जीवन में शांति, समृद्धि और पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है और मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करता है।
  • यह व्रत भूत-प्रेत बाधाओं से रक्षा और मानसिक शुद्धि के लिए भी अति प्रभावी माना गया है।

व्रती ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके व्रत का संकल्प करता है। भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र पर तुलसी दल चढ़ाकर पूजा की जाती है। दिनभर उपवास, भजन-कीर्तन और विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ किया जाता है। रात्रि में जागरण और अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण फल और जल से किया जाता है। ब्राह्मणों को भोजन और दान देना शुभ माना जाता है।


श्रावण पुत्रदा एकादशी – 

श्रावण पुत्रदा एकादशी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है। यह एकादशी विशेष रूप से संतान प्राप्ति की कामना और संतान की समृद्धि के लिए की जाती है। यह एकादशी उन दंपतियों के लिए अत्यंत फलदायी मानी जाती है जिन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं है। यह श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है, जो आमतौर पर जुलाई–अगस्त में पड़ती है।

वर्ष भर में दो पुत्रदा एकादशी होती हैं —

  1. श्रावण शुक्ल पक्ष की (श्रावण पुत्रदा एकादशी)
  2. पौष शुक्ल पक्ष की (पौष पुत्रदा एकादशी)

पौराणिक कथा के अनुसार, महिष्मती नगरी के राजा महिजीत को संतान नहीं थी। उनके राज्य के ब्राह्मणों और ऋषियों ने तपस्या कर यह जाना कि पूर्व जन्म के पाप के कारण उन्हें संतान नहीं मिल रही। तब राजा ने श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत किया, और बाद में उन्हें एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई।

महत्त्व/फल:

  • यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावी है।
  • जिनके संतान है, उनके जीवन, स्वास्थ्य और सफलता के लिए भी यह व्रत किया जाता है।
  • व्रत से जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश होता है।
  • व्यक्ति को पुण्य, यश और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

व्रती प्रातः स्नान करके संकल्प करता है। भगवान विष्णु की पूजा विशेष रूप से तुलसी पत्र, फल, पंचामृत और दीप से की जाती है। दिनभर निर्जल या फलाहारी व्रत, भजन-कीर्तन और विष्णुसहस्रनाम पाठ करते हैं। रात्रि में जागरण और अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण और ब्राह्मण भोज व दान करते हैं।


जया एकादशी 

जया एकादशी माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है। यह व्रत पिशाच योनि से मुक्ति, भूत-प्रेत बाधा निवारण, और मोक्ष की प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावी माना गया है। यह व्रत विशेष रूप से मानसिक और आत्मिक शुद्धि प्रदान करता है। यह माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है, यानी जनवरी–फरवरी के बीच।

पौराणिक कथा के अनुसार, नंदन वन में गंधर्व माल्यवान और उसकी पत्नी पुष्पवती ने इंद्रसभा में प्रेम के कारण अनुशासन भंग किया। इंद्र ने उन्हें शाप देकर पिशाच बना दिया। दोनों ने माघ शुक्ल एकादशी (जया एकादशी) का अनजाने में व्रत कर लिया जिससे उन्हें शाप से मुक्ति मिली और पुनः गंधर्व रूप में स्वर्ग प्राप्त हुआ।

महत्त्व/फल:

  • यह व्रत पिशाच योनि से छुटकारा दिलाता है।
  • भूत-प्रेत बाधाओं, मानसिक कष्ट, और भय से मुक्ति मिलती है।
  • यह आत्मा को पवित्र और ऊर्जावान बनाता है।
  • व्रती को सुख-शांति, पुण्य, और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • यह व्रत सभी प्रकार के पापों का नाश करता है, विशेषकर उन पापों का जो अनजाने में हो जाते हैं।

व्रती सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प करता है। दिनभर उपवास, भगवान विष्णु की पूजा, तुलसी अर्पण और भजन-कीर्तन करता है। रात को जागरण कर श्रीहरि का ध्यान किया जाता है। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर और दान देकर व्रत का पारण किया जाता है।


पद्मा एकादशी – 

पद्मा एकादशी को देवशयनी एकादशी, हरिशयनी एकादशी या आषाढ़ी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी है और इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। यह एकादशी चातुर्मास की शुरुआत को दर्शाती है। यह आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है, यानी जून–जुलाई के महीने में।

पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) को जागते हैं। इस दौरान संसार का संचालन भगवान शिव और ब्रह्मा करते हैं। पद्मा एकादशी का व्रत अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।

महत्त्व/फल:

  • इस व्रत से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
  • मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • यह व्रत चातुर्मास की शुरुआत का प्रतीक है, जिसमें लोग व्रत, संयम, भक्ति और सेवा का पालन करते हैं।
  • विवाह आदि शुभ कार्यों पर विराम इस दिन से लग जाता है (कार्तिक शुक्ल एकादशी तक)।
  • यह व्रत वैकुण्ठ प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

व्रती प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प करता है। भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है – शंख, चक्र, गदा, पद्म अर्पित किए जाते हैं। तुलसी दल चढ़ाया जाता है, भजन-कीर्तन और विष्णुसहस्रनाम का पाठ किया जाता है। रात्रि में जागरण और अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण, दान-पुण्य और ब्राह्मण भोज कराया जाता है। इस दिन विष्णुजी का शयनोत्सव (शयन आरती) करना शुभ माना जाता है।


इंदिरा एकादशी – 

इंदिरा एकादशी पितरों को मोक्ष दिलाने वाली एक अत्यंत पुण्यदायी एकादशी है। यह आश्विन कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है और श्राद्ध पक्ष (पितृ पक्ष) के दौरान आती है। इस दिन व्रत करके अपने पितरों के उद्धार के लिए प्रार्थना की जाती है। यह आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी, यानी सितंबर–अक्टूबर में आती है, पितृपक्ष के दौरान।

पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेतायुग में महिष्मती नगरी के राजा इन्द्रसेन को नारद मुनि ने बताया कि उनके पिता को पितृलोक में कष्ट भोगना पड़ रहा है। इस पर राजा ने नारद जी की सलाह से इंदिरा एकादशी का व्रत किया और अपने पितरों को स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।

महत्त्व/फल:

  • यह व्रत करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
  • व्रती के कुल के सभी पितरों को स्वर्ग मिलता है।
  • साथ ही स्वयं को भी पुण्य, यश, और उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है।

व्रती सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प करता है। भगवान विष्णु की पूजा, विशेष रूप से तुलसी, दीप और फल अर्पण कर की जाती है। पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध किया जाता है। रात्रि जागरण कर भजन-कीर्तन होता है। द्वादशी को व्रत का पारण कर ब्राह्मणों को भोजन और दान दिया जाता है। इंदिरा एकादशी श्राद्ध पक्ष की सबसे मुख्य एकादशी मानी जाती है और इसे श्रद्धा और भक्ति से करना अत्यंत फलदायी होता है।


पापांकुशा एकादशी – 

पापांकुशा एकादशी अश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है। यह व्रत सभी प्रकार के पापों को नष्ट करने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है। इसका नाम "पाप" (पाप) + "अंकुश" (नियंत्रण करने वाला) से बना है, अर्थात् यह व्रत पापों को नियंत्रित करता है। यह अश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है, यानी सितंबर–अक्टूबर महीने में।

पौराणिक कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि इस व्रत को करने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति जीवन भर पाप करता रहा हो, लेकिन यदि वह श्रद्धा से इस व्रत को करे, तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

एक बार एक शिकारी, जो जीवनभर हिंसा करता रहा, इस एकादशी को अनजाने में व्रत कर बैठा, और मृत्यु के बाद वह स्वर्ग को प्राप्त हुआ।

महत्त्व/फल:

  • इस व्रत से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं।
  • व्यक्ति को स्वर्ग, सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • यह एकादशी मन, वाणी और कर्म को शुद्ध करने वाली मानी जाती है।
  • व्रती को यमलोक की पीड़ा से मुक्ति मिलती है।

व्रती प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प करता है। दिन भर निर्जल या फलाहार व्रत, भगवान विष्णु की पूजा, तुलसी दल अर्पण, दीपदान, और भजन-कीर्तन किया जाता है। रात्रि में जागरण होता है। द्वादशी को व्रत का पारण, ब्राह्मण भोज, और दान-पुण्य किया जाता है। यह व्रत उन लोगों के लिए विशेष फलदायी है जो आध्यात्मिक शुद्धि और आत्मिक उन्नति चाहते हैं।


रमा एकादशी – 

रमा एकादशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है। यह एकादशी विशेष रूप से धन-समृद्धि, पुण्य प्राप्ति, और पापों से मुक्ति के लिए मानी जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु दोनों की पूजा का विशेष महत्व है। यह कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी को आती है, यानी अक्टूबर–नवंबर महीने में। 

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मुचुकुंद नामक राजा ने रमा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया, जिससे उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसके अलावा, एक धनी किन्तु पापी व्यापारी की पत्नी ने इस व्रत को करके उसे भी स्वर्ग दिलाया और स्वयं को भी।

महत्त्व/फल:

  • इस व्रत से सभी प्रकार के पाप समाप्त होते हैं।
  • धन, वैभव और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
  • गृहस्थ जीवन में सुख आता है और लक्ष्मीजी की कृपा बनी रहती है।
  • यह व्रत मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
  • स्त्रियों के लिए यह व्रत पवित्रता और सौभाग्य बढ़ाने वाला माना गया है।

व्रती ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प करता है। दिन भर उपवास रखा जाता है – निर्जल या फलाहारी। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है – दीप, पुष्प, फल और तुलसी अर्पण कर। विष्णुसहस्रनाम का पाठ और भजन-कीर्तन किया जाता है। रात्रि में जागरण और अगले दिन ब्राह्मण भोजन, दान और पारण किया जाता है।

विशेष: रमा एकादशी दीपावली से कुछ दिन पहले आती है, इसलिए यह आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से भी बहुत शुभ मानी जाती है।


देवउठनी एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) – 

देवउठनी एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी, हरि उठनी एकादशी, और तुलसी विवाह एकादशी भी कहा जाता है। यह भगवान विष्णु के चार महीने की योगनिद्रा (चातुर्मास) के बाद जगने का दिन होता है। इस दिन से पुनः शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है, यानी अक्टूबर–नवंबर के बीच।

चातुर्मास के दौरान (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक) भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन वे जागते हैं और इस दिन तुलसी विवाह भी होता है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान विष्णु ने इस दिन शंखचूड़ राक्षस का वध कर देवताओं की रक्षा की थी।

महत्त्व/फल:

  • यह व्रत पुण्य, धन, वैवाहिक सुख और मोक्ष प्रदान करता है।
  • इस दिन से शादी-ब्याह, गृह प्रवेश, नामकरण आदि शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।
  • तुलसी विवाह करने से कन्यादान के बराबर पुण्य मिलता है।
  • यह व्रत चातुर्मास के संकल्प की पूर्णता और शुद्ध जीवन की शुरुआत मानी जाती है।

प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु और तुलसीजी की विशेष पूजा करें। तुलसी विवाह का आयोजन करें – तुलसी माता को सुहागन की तरह सजाया जाता है और उनका विवाह शालिग्राम (विष्णुजी) से कराया जाता है। दीपदान, भजन-कीर्तन, विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें। रात्रि जागरण और अगले दिन पारण, दान, और ब्राह्मण भोज करें।

विशेष रूप से यह दिन अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का प्रतीक माना जाता है।


उत्पन्ना एकादशी – 

उत्पन्ना एकादशी को एकादशी व्रत की जननी माना जाता है। यह व्रत सबसे पहली एकादशी मानी जाती है, जब अधर्म के नाश के लिए भगवान विष्णु के शरीर से एकादशी देवी प्रकट हुई थीं। इसलिए इसे “उत्पन्ना” (अर्थात उत्पन्न हुई) एकादशी कहा जाता है। यह मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आती है(अर्थात नवंबर–दिसंबर में)।

पुराणों के अनुसार, एक बार मुर नामक एक अत्याचारी राक्षस ने तीनों लोकों में आतंक फैला दिया। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने मुर का वध करने का संकल्प लिया। युद्ध के बीच भगवान विष्णु विश्राम कर रहे थे, तब उनके शरीर से एक तेजस्वी स्त्री उत्पन्न हुई, जिसने मुर राक्षस का वध किया। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उस कन्या को वरदान दिया कि वह “एकादशी देवी” के रूप में जानी जाएगी और उसके दिन व्रत करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाएगा।

महत्त्व/फल:

  • यह व्रत सभी एकादशियों का मूल व्रत है।
  • पापों का नाश, मोक्ष की प्राप्ति और आध्यात्मिक शक्ति मिलती है।
  • यह व्रत सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग – सभी युगों में पुण्यदायी माना गया है।
  • मानसिक शांति, पारिवारिक सुख, और आत्मिक विकास में सहायक है।

व्रती ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करके व्रत का संकल्प करता है। दिन भर उपवास, भगवान विष्णु और एकादशी देवी की पूजा। दीप, पुष्प, तुलसी, फल आदि अर्पण कर विष्णुसहस्रनाम का पाठ किया जाता है। रात्रि में जागरण, और द्वादशी को पारण, ब्राह्मण भोजन और दान किया जाता है।

विशेष: उत्पन्ना एकादशी से उन लोगों को एकादशी व्रत आरंभ करने की परंपरा है जिन्होंने पहले कभी एकादशी व्रत नहीं किया हो।

 

मोक्षदा एकादशी 

मोक्षदा एकादशी का अर्थ है – "मोक्ष प्रदान करने वाली एकादशी"। यह एकादशी पापों का नाश करके आत्मा को मोक्ष दिलाने वाली मानी जाती है। यह गीता जयंती के रूप में भी प्रसिद्ध है, क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था। यह मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है(अर्थात नवंबर–दिसंबर के बीच)।

पौराणिक कथा के अनुसार, चंपक नगर के राजा वैखानस ने एक रात स्वप्न में अपने पिता को नरक में कष्ट भोगते देखा। चिंतित होकर उन्होंने मुनि पर्वतराज से इसका कारण पूछा। मुनि ने बताया कि पूर्व जन्म के पापों के कारण ऐसा हो रहा है। उन्होंने उपाय बताया कि यदि राजा मोक्षदा एकादशी का व्रत करें और उस पुण्य को अपने पितरों को अर्पित करें तो उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा। राजा ने ऐसा ही किया और उनके पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

महत्त्व/फल:

  • यह व्रत पूर्वजों की मुक्ति और आत्मा के मोक्ष के लिए अत्यंत फलदायी है।
  • अंतिम जन्म का पुण्यफल और पुनर्जन्म से मुक्ति प्रदान करता है।
  • गीता का पाठ करने से जीवन में धर्मबुद्धि, कर्मज्ञान, और आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है।
  • यह व्रत पितृदोष, भय, अशांति, और मानसिक तनाव को भी दूर करता है।

प्रातःकाल स्नान करके व्रत का संकल्प लिया जाता है। दिन भर उपवास और भगवान विष्णु तथा गीता ग्रंथ की पूजा की जाती है। श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ, भजन-कीर्तन, और दीपदान किया जाता है। रात्रि जागरण और द्वादशी को व्रत का पारण करके दान-पुण्य किया जाता है।

विशेष: मोक्षदा एकादशी गीता जयंती के रूप में भी मनाई जाती है और आत्मा की मुक्ति के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।


सफला एकादशी – 

सफला एकादशी पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है। यह व्रत सभी कार्यों में सफलता दिलाने वाला माना जाता है। "सफला" शब्द का अर्थ है – "सफलता प्रदान करने वाली"। यह एकादशी मनुष्य को सदैव शुभ फल और जीवन की सार्थकता प्रदान करती है। यह पौष कृष्ण पक्ष की एकादशी को आती है, यानी दिसंबर–जनवरी महीने में।

पौराणिक कथा के अनुसार, चंपावती नगरी का लुम्पक नामक राजकुमार बहुत पापी था। वह चोरी, हत्या और व्यभिचार करता था। पिता ने उसे राज्य से निकाल दिया। वह वन में रहने लगा और एक दिन ठंड से कांपते हुए सफला एकादशी के दिन भूखा रह गया। उसने भगवान विष्णु के नाम का ध्यान किया। अनजाने में उपवास और जागरण हो गया। भगवान विष्णु ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की और उसे पापों से मुक्त कर दिया। बाद में वह संत बन गया और मोक्ष को प्राप्त हुआ।

महत्त्व/फल:

  • यह व्रत जीवन में सफलता, पुण्य, और पापों के नाश के लिए अत्यंत फलदायी है।
  • सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।
  • आर्थिक, पारिवारिक, और मानसिक सुख प्राप्त होता है।
  • यह व्रत बिगड़े कार्यों को संवारने की शक्ति देता है।
  • निर्बल, निराश या गलत राह पर चल रहे लोगों के लिए यह व्रत जीवन सुधारक माना गया है।

प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें। दिन भर निर्जल या फलाहार व्रत, विष्णु भगवान की पूजा करें। तुलसी, दीप, धूप, पुष्प, फल अर्पित करें। रात्रि में जागरण, भजन, और विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें। द्वादशी को व्रत का पारण करें, दान-पुण्य करें।

विशेष: यह एकादशी वर्ष की अंतिम एकादशी भी हो सकती है (यदि पूर्णिमा के अनुसार गिना जाए), इसलिए इसे वर्षांत की सफलता का संकेतक भी माना जाता है।


पौष पुत्रदा एकादशी – 

पौष पुत्रदा एकादशी, संतान प्राप्ति और संतान की रक्षा के लिए विशेष रूप से मानी जाने वाली एकादशी है। इसका नाम ही है "पुत्रदा" – यानी पुत्र प्रदान करने वाली। यह एकादशी मुख्य रूप से संतान सुख, परिवार वृद्धि और वंश रक्षा के लिए की जाती है। यह पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है, यानी जनवरी महीने में(यह वैष्णव पंचांग के अनुसार भिन्न भी हो सकती है)।

 नोट: साल में दो पुत्रदा एकादशी आती हैं:

  1. श्रावण शुक्ल पक्ष में (श्रावण पुत्रदा एकादशी)
  2. पौष शुक्ल पक्ष में (पौष पुत्रदा एकादशी)

          दोनों का उद्देश्य एक ही है – संतान सुख।

भविष्य पुराण के अनुसार, महिष्मती नगर के राजा सुखेतुमान की कोई संतान नहीं थी। वे और रानी संतान न होने के कारण अत्यंत दुःखी रहते थे। एक दिन वे वन में चले गए और वहाँ उन्होंने मुनियों से पौष शुक्ल एकादशी का व्रत करने का उपदेश पाया। राजा ने पूरे विधि-विधान से व्रत किया, जिसके फलस्वरूप कुछ समय बाद उन्हें एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई।

महत्त्व/फल:

  • यह व्रत संतान की प्राप्ति और संतान के कल्याण के लिए उत्तम है।
  • दंपतियों को संतान सुख प्राप्त होता है।
  • यह व्रत पुत्र प्राप्ति, वंश वृद्धि, और पितृ ऋण से मुक्ति दिलाता है।
  • यह व्रत कुल का उद्धार करने वाला कहा गया है।

प्रातः स्नान कर भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें। दिन भर उपवास (निर्जल या फलाहार), भगवान नारायण की पूजा, तुलसी पत्र, दीप, फल, मिष्ठान अर्पित करें। रात्रि को जागरण, विष्णुसहस्रनाम और गीता पाठ करें। द्वादशी को पारण करें और ब्राह्मण भोजन व दान-पुण्य करें।

विशेष: यह व्रत निःसंतान दंपतियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और श्रद्धा से किया जाए तो भगवान विष्णु संतान रूप में कृपा करते हैं।


षटतिला एकादशी – 

“षटतिला” शब्द दो भागों से बना है – "षट्" यानी छः और "तिल" यानी तिल। यह एकादशी तिल के छह प्रकार के उपयोग पर आधारित है और इसे विशेष रूप से दान, स्नान, व्रत और आत्मशुद्धि के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह एकादशी पौष मास की दूसरी एकादशी होती है। यह पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आती है(अर्थात जनवरी महीने में)।

पद्म पुराण के अनुसार, एक बार नारद मुनि ने भगवान विष्णु से पूछा कि कौन-सा व्रत मनुष्य के पापों को पूर्णतः नष्ट कर सकता है। भगवान विष्णु ने कहा कि जो मनुष्य षटतिला एकादशी को श्रद्धा से करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
एक कथा के अनुसार, एक ब्राह्मणी ने वर्षों तक व्रत-तप किया पर दान नहीं किया। मृत्यु के बाद वह स्वर्ग में गई पर वहाँ उसे भोजन नहीं मिला। भगवान विष्णु ने उसे बताया कि उसने तिल का दान नहीं किया था। तब उसने दोबारा जन्म लेकर इस व्रत को विधिपूर्वक किया और पूर्ण फल प्राप्त किया।

महत्त्व/फल:

  • यह व्रत समस्त पापों का नाश करता है।
  • गरीबी, दुर्भाग्य, और भवबंधन से मुक्ति मिलती है।
  • पूर्वजों को शांति, और जीवन में पुण्य व आत्मिक शुद्धि मिलती है।
  • तिल का दान करने से अखंड पुण्य प्राप्त होता है।
  • यह व्रत दान की शक्ति और सात्विक जीवन का संदेश देता है।

 इस व्रत में "तिल" का विशेष महत्त्व होता है और इसका उपयोग 6 प्रकार से किया जाता है:

  1. तिल से स्नान करना
  2. तिल का उबटन लगाना
  3. तिल का हवन करना
  4. तिल मिश्रित जल पीना
  5. तिल का भोजन करना
  6. तिल का दान करना

दिन भर उपवास करें, भगवान विष्णु की पूजा करें। रात्रि में जागरण करें, भजन-कीर्तन करें। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करें और तिल, अन्न, वस्त्र आदि का दान करें।

विशेष: यदि कोई व्यक्ति अन्य एकादशियाँ नहीं भी कर पाए, तो सिर्फ षटतिला एकादशी का व्रत भी बहुत पुण्यदायी होता है।


जया एकादशी – 

जया एकादशी माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है। यह एकादशी पापों से मुक्ति और स्वर्ग प्राप्ति के लिए अत्यंत फलदायी मानी जाती है। इसका नाम "जया" इसलिए है क्योंकि इस दिन व्रत करने से साधक को विजय (जया) प्राप्त होती है – पापों पर, इच्छाओं पर, और जन्म-मरण के चक्र पर। यह माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है(अर्थात जनवरी–फरवरी के महीने में)।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार नंदन वन में गंधर्व गायन कर रहे थे। वहाँ माल्यवान नामक गंधर्व और पुष्पवती नाम की अप्सरा एक-दूसरे पर मोहित होकर सभा में अनुशासनहीनता करने लगे। इस पर भगवान इंद्र ने क्रोधित होकर उन्हें पिशाच योनि में भेज दिया। वर्षों तक वे भयानक यंत्रणा भोगते रहे।
संयोगवश एक दिन माघ शुक्ल एकादशी आई और उन्होंने उस दिन भूखे-प्यासे रहकर, भगवान विष्णु का ध्यान किया। इससे अनजाने में उनका व्रत हो गया। भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उन्हें पिशाच योनि से मुक्त कर दिया और स्वर्ग वापसी का वरदान दिया।

महत्त्व/फल:

  • यह एकादशी भूत-प्रेत, पिशाच जैसी योनियों से मुक्ति दिलाने वाली मानी जाती है।
  • भूत बाधा, मानसिक अशांति, डर, दुःस्वप्न से ग्रसित लोग इस व्रत से लाभ पाते हैं।
  • यह व्रत भवसागर से पार कराने वाला, और मोक्षदायक है।
  • मन, वाणी और कर्म से हुए पापों का शुद्धिकरण होता है।
  • यह व्रत सभी युगों में पुण्यदायक और प्रभु भक्ति को प्रगाढ़ करने वाला माना गया है।

प्रातःकाल स्नान करके व्रत का संकल्प लिया जाता है। भगवान श्रीहरि विष्णु का पूजन करें – तुलसी, फल, दीप, धूप, पीले फूल अर्पित करें। दिन भर निर्जल या फलाहार उपवास रखें। रात्रि में जागरण, भजन, कीर्तन करें। अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मण को भोजन और वस्त्र, तिल, गुड़, अन्न आदि का दान करें। 

विशेष: जया एकादशी को व्रत करने से मनुष्य पिशाच जैसी योनियों से मुक्त होकर, मोक्ष प्राप्त करता है। यह व्रत अत्यंत शुभ व प्रभावशाली माना गया है।


विजया एकादशी – 

विजया एकादशी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है। “विजया” शब्द का अर्थ है विजय (जीत)। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को शत्रुओं पर विजय, कठिन परिस्थितियों में सफलता, और आत्मिक बल प्राप्त होता है। यह एकादशी सब बाधाओं को हराकर विजय दिलाने वाली मानी गई है। यह फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी को आती है(अर्थात फरवरी–मार्च में)।

पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम लंका पर चढ़ाई करने जा रहे थे, तो उन्होंने समुद्र पार करने और युद्ध में विजय पाने के लिए मुनीश्वर वसिष्ठ से परामर्श लिया। वसिष्ठ मुनि ने श्रीराम को विजया एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। भगवान श्रीराम ने विधिपूर्वक इस व्रत को किया और इसके प्रभाव से उन्होंने समुद्र पार किया और रावण पर विजय प्राप्त की।

महत्त्व/फल:

  • यह व्रत शत्रु बाधा से मुक्ति, कार्य में सफलता, और कठिन परिस्थितियों से उबारने वाला है।
  • यात्रा, युद्ध, परीक्षा, कोर्ट-कचहरी, व्यापार आदि में विजय पाने के लिए अति उत्तम माना गया है।
  • यह व्रत पापों का नाश करता है और सदैव शुभ फल देता है।
  • अदृश्य संकटों से रक्षा करता है।
  • चिंता, भय और असमर्थता से मुक्ति दिलाता है।

प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें। दिन भर निर्जल या फलाहारी उपवास रखें। भगवान श्रीहरि विष्णु का पूजन करें – तुलसी, दीप, धूप, चंदन, फल आदि अर्पित करें। शंख और घंटी ध्वनि के साथ विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें। रात्रि जागरण करें और अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मणों को दान देकर पारण करें। 

विशेष: विजया एकादशी का व्रत करने से जीवन की हर चुनौती में विजय मिलती है। यह उन लोगों के लिए विशेष फलदायी है जो महत्वपूर्ण निर्णयों या संघर्षों के दौर में हों।


आमलकी एकादशी – 

आमलकी एकादशी फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है। इसका नाम “आमलकी” यानी आंवला के कारण पड़ा है, क्योंकि इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। यह एकादशी विशेष रूप से आरोग्य, पुण्य, और आयु वृद्धि के लिए मानी जाती है। यह व्रत धार्मिक रूप से विष्णु भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे भगवान विष्णु की आंवले में निवास करने वाली शक्ति का पूजन माना जाता है। यह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है(अर्थात फरवरी–मार्च में)।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार व्रतक नामक राजा और उसकी प्रजा ने पूरे नगर में आमलकी एकादशी का विधिवत् व्रत किया। उस रात एक राक्षस नगर में आया, लेकिन एक अदृश्य शक्ति ने उसे नष्ट कर दिया। अगली सुबह जब लोग जागे तो देखा कि भगवान विष्णु की कृपा से नगर सुरक्षित रहा।

इस घटना के बाद आमलकी एकादशी को रक्षा और पुण्य की दृष्टि से बहुत बड़ा व्रत माना जाने लगा।

महत्त्व/फल:

  • यह व्रत करने से आरोग्य, दीर्घायु, और पापों से मुक्ति मिलती है।
  • आंवला (आमलकी) को पूजने से शरीर और मन दोनों की शुद्धि होती है।
  • यह एकादशी सभी प्रकार के रोगों, कष्टों, और दरिद्रता को दूर करती है।
  • भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी, और धात्री देवी (आंवले की अधिष्ठात्री शक्ति) की कृपा मिलती है।
  • व्रतकर्ता को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है और मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है।

प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें। आंवले के पेड़ के नीचे या उसकी शाखा के पास पूजा करें। भगवान विष्णु और आमलकी वृक्ष को दीप, जल, रोली, चावल, फल आदि अर्पित करें। दिन भर निर्जल या फलाहार उपवास रखें। रात्रि में जागरण और कीर्तन करें। द्वादशी के दिन व्रत पारण और ब्राह्मणों को आंवला, अन्न, वस्त्र आदि का दान करें। 

विशेष: यह एकादशी आयु, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक बल देने वाली होती है। जो व्यक्ति इस दिन सच्चे भाव से आंवले की पूजा करता है, उसे शरीर, मन, और आत्मा की शक्ति प्राप्त होती है।


पापमोचिनी एकादशी – 

पापमोचिनी एकादशी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है। इसका नाम "पापमोचिनी" इसलिए है क्योंकि यह व्रत सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है। "मोचिनी" का अर्थ है "मुक्त करने वाली" — अर्थात् यह एकादशी पापों से मोक्ष दिलाने वाली होती है। यह चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को आती है(अर्थात मार्च–अप्रैल के महीने में)।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार चित्ररथ वन में मेधावी नाम के एक ऋषिकुमार ने घोर तपस्या की। वहाँ अप्सरा मन्मथा ने उन्हें मोहित कर दिया और वह ऋषिकुमार तप से विचलित हो गया। जब उसे अपनी भूल का एहसास हुआ, तो वह बड़ा दुखी हुआ और पाप से मुक्त होने के उपाय के लिए अपने पिता च्यवन ऋषि से पूछा।

च्यवन ऋषि ने उसे पापमोचिनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी। मेधावी ने श्रद्धा से व्रत किया और सभी पापों से मुक्त होकर पुनः तपस्वी जीवन को प्राप्त किया।

महत्त्व/फल:

  • यह व्रत किए गए पापों के प्रायश्चित के लिए अत्यंत प्रभावी है।
  • मोह, काम, क्रोध, लोभ आदि दोषों से मुक्ति मिलती है।
  • यह व्रत मन की शुद्धि, और सत्कर्म की प्रेरणा देता है।
  • पापमोचिनी एकादशी करने से व्यक्ति को पाप बंधनों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग खुलता है।
  • पूर्व जन्म के पापों का नाश भी इस व्रत के प्रभाव से होता है।

प्रातः स्नान करके भगवान विष्णु का स्मरण कर व्रत का संकल्प लें। दिन भर निर्जल या फलाहार उपवास रखें। भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करें – तुलसी, दीप, धूप, पुष्प, नैवेद्य अर्पित करें। रात्रि में जागरण करें और विष्णु मंत्रों का जाप करें। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करें और जरूरतमंदों को दान दें।

विशेष: यदि कोई व्यक्ति अनजाने या जानबूझकर गंभीर पाप कर बैठा है, तो यह व्रत उसका आध्यात्मिक शुद्धिकरण करता है। यह एकादशी जीवन में नया आरंभ और आत्मिक बल देने वाली मानी जाती है।

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