अनंत चतुर्दशी – अनंत विश्वास और एकता का पर्व

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी का दिन जब आता है, तो हिंदू समाज में एक खास उत्साह उमड़ पड़ता है। यह दिन है – अनंत चतुर्दशी का।
इस दिन भक्तजन भगवान विष्णु के उस रूप की पूजा करते हैं, जिसे “अनंत” कहा जाता है। “अनंत” का अर्थ है – जिसका कोई अंत न हो। यही कारण है कि भगवान विष्णु के इस स्वरूप को अनंत ब्रह्माण्ड का धारक और रक्षक माना गया है।

 

अनंत सूत्र का महत्व

सुबह-सुबह स्नान करके भक्तजन व्रत का संकल्प लेते हैं। स्त्री-पुरुष दोनों ही इस दिन अनंत सूत्र धारण करते हैं। यह धागा लाल और पीले रंग के सूत से गूंथा हुआ होता है।
पुरुष इसे दाहिनी भुजा पर और स्त्रियाँ इसे बाईं भुजा पर बांधती हैं। जब यह सूत्र बांधा जाता है, तो मन से एक प्रार्थना की जाती है –
“हे भगवान विष्णु, हमारे परिवार की रक्षा करो, हमें सुख-शांति दो और समृद्धि से घर-आँगन भर दो।”
यह सूत्र केवल धागा नहीं, बल्कि विश्वास का बंधन और अनंत आशा का प्रतीक बन जाता है।

 

महाभारत से जुड़ी कथा

कहते हैं, महाभारत काल में जब पांडव कष्टों से घिरे हुए थे, तब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन माँगा।
श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत करने की सलाह दी। युधिष्ठिर ने श्रद्धा से व्रत किया, अनंत सूत्र धारण किया और भगवान विष्णु से प्रार्थना की।
फलस्वरूप उन्हें पुनः शक्ति मिली और विजय का मार्ग प्रशस्त हुआ।
तभी से यह व्रत संकट-निवारण और पारिवारिक एकता के लिए खास माना जाता है।

 

गणेश विसर्जन का दिन

अनंत चतुर्दशी का एक और विशेष महत्व है। यही वह दिन है जब गणेश विसर्जन किया जाता है।
गणेश चतुर्थी के प्रथम दिन घरों और पंडालों में स्थापित गणपति बप्पा, दस दिनों की पूजा और उत्सव के बाद, इसी दिन विदाई लेते हैं।
भक्त गाते-बजाते, ढोल-ताशों की गूंज और “गणपति बप्पा मोरया” के नारों के साथ शोभायात्रा निकालते हैं और भगवान को जल में विसर्जित करते हैं।
विसर्जन हमें यह संदेश देता है कि जीवन क्षणभंगुर है, परंतु ईश्वर और आस्था शाश्वत है – अनंत है।

 

संदेश

अनंत चतुर्दशी केवल पूजा-पाठ का पर्व नहीं है। यह हमें विश्वास, एकता और भक्ति का पाठ सिखाता है।
भगवान विष्णु के “अनंत” स्वरूप का व्रत हमें यह याद दिलाता है कि जब भी जीवन में संकट आए, धैर्य और श्रद्धा से ईश्वर का आश्रय लेने पर हर कठिनाई दूर हो जाती है।

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