श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण, प्रथम खण्ड | Srimad Valmiki Ramayana, Volume I | with Hindi Commentary
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण, प्रथम खण्ड | Srimad Valmiki Ramayana, Volume I | with Hindi Commentary
त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि के श्रीमुख से साक्षात वेदों का ही श्रीमद्रामायण रूप में प्राकट्य हुआ, ऐसी आस्तिक जगत की मान्यता है। अतः श्रीमद्रामायण को वेदतुल्य प्रतिष्ठा प्राप्त है। धराधाम का आदिकाव्य होने से इस में भगवान के लोकपावन चरित्र की सर्वप्रथम वाङ्मयी परिक्रमा है। इसके एक-एक श्लोक में भगवान के दिव्य गुण, सत्य, सौहार्द्र, दया, क्षमा, मृदुता, धीरता, गम्भीरता, ज्ञान, पराक्रम, प्रज्ञा-रंजकता, गुरुभक्ति, मैत्री, करुणा, शरणागत-वत्सलता जैसे अनन्त पुष्पों की दिव्य सुगन्ध है। मूल के साथ सरस हिन्दी अनुवाद में दो खण्डों में उपलब्ध। सचित्र, सजिल्द।
Believed to be the Vedas in poetic form, the Srimad-Ramayana emerged from Maharishi Valmiki's mouth in Tretayuga, holding the same prestige as the Vedas. This original poem presents the first literary circumnavigation of the Lord's holy character, with verses imbued with divine qualities like truth, harmony, mercy, forgiveness, patience, knowledge, wisdom, and compassion.
- Poetic form of the Vedas
- Emerged from Maharishi Valmiki in Tretayuga
- Equal prestige as the Vedas
- First literary exploration of the Lord's holy character
- Verses filled with divine qualities:
- Truth
- Harmony
- Mercy
- Forgiveness
- Patience
- Knowledge
- Wisdom
- Compassion