स्वामी रामकृष्ण का अध्यात्म
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एक दिन स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास एक पुराने योगी पहुंचे। वह उम्र और अनुभव दोनों में ही उनसे बड़े थे और उन्हें पता था कि स्वामी रामकृष्ण आध्यात्म से संबंध रखते हैं। योगी ने रामकृष्ण को उसके साथ गंगा के जल पर चलने को कहा जिससे यह प्रमाणित हो जाए की वास्तविकता में ही उनके जीवन में आध्यात्म है। यह सुनने के बाद रामकृष्ण ने उससे कुछ पल विश्राम करने को कहा और कुछ क्षण बाद, बड़ी ही विनम्रता से पूछा कि उसको पानी पर चलने की कला सीखने में कितने वर्ष का समय लगा, जिस पर योगी ने बताया: अट्ठारह (१८) वर्ष।
अब रामकृष्ण हँसने लगे और योगी से कहा कि वे तो आज तक पानी पर नहीं चले और यदि उन्हें गंगा पार भी करनी होती है तो वे दो पैसे में यह काम आसानी से कर लेते हैं क्योंकि दो पैसे का काम अट्ठारह वर्ष में सीखना मूर्खता है, आध्यात्म नहीं। आध्यात्म तो जीवन से जुड़े कई रहस्यों से पर्दा उठा देता है और जिंदगी के कई भेद हमारे समक्ष खोल देता है। मनुष्य विभिन्न कलाओं का विकास कर यह समझता है कि उसने आध्यात्म को समझ लिया है परन्तु पानी पर चलना आध्यात्म नहीं है। आध्यात्म तो जीवन से जुड़े रहस्यों व स्वयं की आत्मा का अध्ययन करने का मार्ग सुनिश्चित करता है।