सत्यनारायण

संसार की रचना करने के पश्चात अंत में ईश्वर ने मनुष्य की रचना की। ईश्वर ने उसे दो बहुमूल्य उपहार दो घड़ों में भरकर उसके दोनों हाथों पर रख दिये और कहा- इनसे तुम्हें भीतर और बाहर आनन्द ही आनन्द मिलता रहेगा। आश्चर्यचकित मनुष्य ने उन घड़ों के बारे में कुछ विशेष जानना चाहा और उनका उपयोग पूछा। भगवान् ने कहा- दाहिने हाथ वाले घड़े में सत्य है बाँये में सुख। तुम सत्य के द्वारा सुख की रक्षा करना तुम्हें किसी बात की कमी न रहेगी। कालांतर में मनुष्य ने हाथों के घड़ों को बदल लिया, इस प्रकार सुख प्रधान हुआ एवं सत्य गौण।

मनुष्य अब सुख को सुरक्षित रखता है और सत्य की उतनी ही रक्षा करता है जिससे सुख में कमी न आने पावे। ईश्वर की इच्छा पूरी न हो सकी। मनुष्य सत्य के मूल्य पर सुख के फेर में पड़ गया और वह बना, जैसा कि वह आज है। वह न रह सका जैसा कि उसे बनाया और भेजा गया था। यद्यपि अनेकों प्रकार से शास्त्रों ने सत्य के महती स्थान को वर्णित किया है। सत्यमेव जयते के उदघोष को कालांतर में नारायण स्वरुप माना गया। इस प्रकार सत्यनारायण ईश्वर का पर्याय बन गया, परन्तु पांच इंद्रिया और मन मानव से छल किए जाते हैं।

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