सम्मोहित भेड़

एक जादूगर ने बहुत सी भेड़ें पाली हुई थीं। वो अपने भोजन के लिए प्रतिदिन एक भेड़ को काटा करता था। शेष भेड़ें इसको देखकर थर्रा जाती थीं और भयाक्रांत होकर जंगल की ओर भागती थीं। जादूगर को बार बार जाकर उनको सुदूर जंगल से इकट्ठा करके लाना पड़ता था। एक दिन उसने एक युक्ति सोची - क्यों न भेड़ों को सम्मोहित कर दिया जाए। उसने भेड़ों को सम्मोहित किया कि तुम भेड़ नहीं हो। जो कटती है वो भेड़ है, तुम नहीं। उसने कुछ को सम्मोहित कर विश्वास दिलाया कि तुम सिंह हो, अश्व हो, हाथी हो। कुछ को तो वह यह भी विश्वास करवा सका कि वे मनुष्य हैं। अब जादूगर का जीवन आसान हो गया।

अब जब भी कोई भेड़ कटती तो बाकी प्रसन्न होतीं कि बेचारी भेड़ देखो कट रही है, क्योंकि कुछ समझती थीं कि वे शेर हैं, चीता हैं, भेड़िया हैं आदि आदि। उस दिन से भेड़ों ने भागना बंद कर दिया। आदमी भी करीब करीब इसी स्थिति में है, वो सोया है, गहन निद्रा में। आध्यात्मिक अर्थों में सोने का अर्थ वह सोना नहीं है जो हम रात्रि में सोते हैं, वह शारीरिक निद्रा है। आध्यात्मिक निद्रा का अर्थ है जिसको स्वयं का पता नहीं है कि वह कौन है? और मृत्युलोक में क्या कर रहा है? यही निद्रा हमें भुला देती है कि हम ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है। मैथिली शरण जी कहते हैं - यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो, समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो। हे मानव! अपने मनुष्य योनि के तात्पर्य को जानो और इस देह और जीवन का ऐसा उपयोग करो जिससे यह जीवन व्यर्थ न हो। आइए अपनी चेतना को ईश्वरीय चेतना के निकट ले जाकर जीवन को सार्थक करें।

Story by Dharmkshetra

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