लक्ष्य भ्रंशों हि मूर्खता
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एक गाँव में एक युवक रहता था। उसका स्वभाव चंचल और मन अधीर था। वह अपने जीवन के निर्णय खुद न लेकर, सदैव दूसरों से प्रभावित होता था। एक दिन उसने एक धनवान व्यक्ति को देखा और उसका ऐश्वर्य देख, युवक को धन कमाने में रुचि हो गयी, उसने धनवान बनने का निश्चय किया। वह बहुत मेहनत करने लगा और थोड़ी धनराशि भी जमा कर ली। इसी दौरान उसकी मुलाकात एक विद्वान से हुई जिसकी बुद्धिमता देख, युवक पुनः बहुत आकर्षित हुआ, और इस बार उसने बहुत पढ़- लिखकर एक विद्वान बनने की ठानी। वह दिन-रात एक करके पढ़ता और विद्वान बनने का हर संभव प्रयास करता। कुछ दिन गंभीरता से अध्ययन करने के पश्चात, उसकी मुलाकात एक संगीतज्ञ से हुई।
उसे अब पढाई से अधिक, संगीत लुभाने लगा और उसने भविष्य में संगीतकार बनने का निश्चय किया। कई वर्ष बीत गए, अपने इस अधीर स्वभाव के कारण, न तो युवक धन का मालिक बना पाया, न ही सुरों का और न ही वह विद्या अर्जित करने में सफल रहा। अब वह जीवन से बहुत निराश था और उसके सामने कोई रास्ता न था। एक दिन उसकी भेंट एक महात्मा से हुई, जिनसे युवक ने अपनी व्यथा कही। युवक की बात सुन, महात्मा बोले, बालक! जीवन के हर मोड़, हर पड़ाव पर तुम्हें बहुत से मार्ग दिखाई देंगे और हर मार्ग तुम्हें अपनी ओर आकर्षित करेगा। ऐसे में तुम्हें अधीर न होकर, अपने चित्त को स्थिर रख, संचेतना से निर्णय लेना चाहिए। अनेक राहों पर न जाकर, एक मार्ग तय करो और सदा उसी का निर्वाह करो। ऐसा करने से तुम्हारी उन्नति निश्चित है। युवक महात्मा की बात समझ गया और अपने उद्देश्य की पूर्ति करने में जुट गया।